साथ Poetry (page 91)

न निकला मुँह से कुछ निकली न कुछ भी क़ल्ब-ए-मुज़्तर की

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता है

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

मस्कन वहीं कहीं है वहीं आशियाँ कहीं

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

तिरछी नज़र न हो तरफ़-ए-दिल तो क्या करूँ

आग़ा हज्जू शरफ़

रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे

आग़ा हज्जू शरफ़

ख़ुश-क़िस्मत हैं वो जो गाँव में लम्बी तान के सोते हैं

अफ़ज़ल परवेज़

ख़ाली हुआ गिलास नशा सर में आ गया

अफ़ज़ाल नवेद

इक धन को एक धन से अलग कर लूँ और गाऊँ

अफ़ज़ाल नवेद

किसी ने ख़्वाब में आकर मुझे ये हुक्म दिया

अफ़ज़ल ख़ान

उस लम्हे तिश्ना-लब रेत भी पानी होती है

अफ़ज़ल ख़ान

मैं ख़ुद को इस लिए मंज़र पे लाने वाला नहीं

अफ़ज़ल गौहर राव

हिज्र में इतना ख़सारा तो नहीं हो सकता

अफ़ज़ल गौहर राव

ये बता दे मुझ को मेरे दिल किसे आवाज़ दूँ

अफ़ज़ल इलाहाबादी

मैं चाहता हूँ मुझे मशअलों के साथ जला

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

दो ज़बानों में सज़ा-ए-मौत

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

हुआ है क़त्अ मिरा दस्त-ए-मोजज़ा तुझ पे

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

दीवारों में दर होता तो अच्छा था

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

मैं जंगलों में दरिंदों के साथ रहता रहा

आफ़ताब शम्सी

जो साथ लाए थे घर से वो खो गया है कहीं

आफ़ताब शम्सी

मेला

आफ़ताब शम्सी

टूटा हुआ आईना जो रस्ते में पड़ा था

आफ़ताब शम्सी

पयाम-ए-आश्ती इक ढोंग दोस्ती का था

आफ़ताब शम्सी

जो दिल में है वही बाहर दिखाई देता है

आफ़ताब शम्सी

असीर-ए-जिस्म हूँ दरवाज़ा तोड़ डाले कोई

आफ़ताब शम्सी

या साल ओ माह था तू मिरे साथ या तो अब

आफ़ताब शाह आलम सानी

घर ग़ैर के जो यार मिरा रात से गया

आफ़ताब शाह आलम सानी

हिज्र-ज़ाद

आफ़ताब इक़बाल शमीम

जब चाहा ख़ुद को शाद या नाशाद कर लिया

आफ़ताब इक़बाल शमीम

हाँ उसी दिन धूप में हरियालियाँ शामिल हुईं

आफ़ताब इक़बाल शमीम

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