मैं चाहता हूँ मुझे मशअलों के साथ जला
कुशादा-तर है अगर ख़ेमा-ए-हवा तुझ पे
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उसे अजब था ग़ुरूर-ए-शगुफ़्त-ए-रुख़्सारी
कोई न हर्फ़-ए-नवेद-ओ-ख़बर कहा उस ने
जंगल के पास एक औरत
किताब-ए-उम्र से सब हर्फ़ उड़ गए मेरे
सिर्फ़ ग़ैर-अहम शाएर
एक तलवार की दास्तान
हम कसी से पूछे बग़ैर ज़िंदा रहते हैं
मैं डरता हूँ
सितम की तेग़ पे ये दस्त-ए-बे-नियाम रक्खा
हमें भूल जाना चाहिए
शाइरी मैं ने ईजाद की
ज़िंदगी हमारे लिए कितना आसान कर दी गई है