शाम Poetry (page 67)

शाख़-ए-अरमाँ की वही बे-सब्री आज भी है

अहमद अज़ीमाबादी

ऐ शाम-ए-हिज्र-ए-यार मिरी तू गवाही दे

अहमद अज़ीम

किसे ख़बर कि है क्या क्या ये जान थामे हुए

अहमद अज़ीम

दस्तक हवा की सुन के कभी डर नहीं गया

अहमद अज़ीम

वैलेंटाइन-डे

अहमद आज़ाद

पहले हम अश्क थे फिर दीदा-ए-नम-नाक हुए

अहमद अता

सब जल गया जलते हुए ख़्वाबों के असर से

अहमद अशफ़ाक़

कौन है किस का ये पैग़ाम है क्या अर्ज़ करूँ

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए

आग़ा हज्जू शरफ़

सन्नाटे का आलम क़ब्र में है है ख़्वाब-ए-अदम आराम नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

नाहक़ ओ हक़ का उन्हें ख़ौफ़-ओ-ख़तर कुछ भी नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

इलाही ख़ैर जो शर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

गर्द उड़े या कोई आँधी ही चले

अफ़ज़ल परवेज़

रह-ए-सुलूक में बल डालने पे रहता है

अफ़ज़ाल नवेद

इक धन को एक धन से अलग कर लूँ और गाऊँ

अफ़ज़ाल नवेद

धनक में सर थे तिरी शाल के चुराए हुए

अफ़ज़ाल नवेद

बाग़ क्या क्या शजर दिखाते हैं

अफ़ज़ाल नवेद

जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है

अफ़ज़ल ख़ान

ये नहर-ए-आब भी उस की है मुल्क-ए-शाम उस का

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

रौशन वो दिल पे मेरे दिल-आज़ार से हुआ

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

कभी न ख़ुद को बद-अंदेश-ए-दश्त-ओ-दर रक्खा

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

हुआ है क़त्अ मिरा दस्त-ए-मोजज़ा तुझ पे

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

गिरा तो गिर के सर-ए-ख़ाक-ए-इब्तिज़ाल आया

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

इक शाम ये सफ़्फ़ाक ओ बद-अंदेश जला दे

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

गुज़रते लम्हों का मातम

आफ़ताब शम्सी

सभी बिछड़ गए मुझ से गुज़रते पल की तरह

आफ़ताब शम्सी

देर तक रात अँधेरे में जो मैं ने देखा

आफ़ताब शम्सी

आजिज़ हूँ तिरे हाथ से क्या काम करूँ मैं

आफ़ताब शाह आलम सानी

हिज्र-ज़ाद

आफ़ताब इक़बाल शमीम

अपनी कैफ़िय्यतें हर आन बदलती हुई शाम

आफ़ताब इक़बाल शमीम

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