शहर Poetry (page 49)

रास आई न मुझे अंजुमन-आराई भी

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

ज़माना देखता है हंस के चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ मेरी

हीरा लाल फ़लक देहलवी

क्या गुल खिलाए देखिए तपती हुई हवा

हज़ीं लुधियानवी

हैरान सारा शहर था जिस की उड़ान पर

हज़ीं लुधियानवी

दर्द के सीप में पैदा हुई बेदारी सी

हज़ीं लुधियानवी

ख़ाल-ए-रुख़्सार को दाग़-ए-मह-ए-कामिल बाँधा

हयात मदरासी

सूने सूने उजड़े उजड़े से घरों में ले चलो

हयात लखनवी

मैं ख़ाल-ओ-ख़द का सरापा तसव्वुरात में था

हयात लखनवी

कब क़ाबिल-ए-तक़लीद है किरदार हमारा

हयात लखनवी

कू-ए-क़ातिल में बसेगी नई दुनिया इक और

हातिम अली मेहर

ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है

हातिम अली मेहर

सर-ए-दरबार ख़ामोशी तह-ए-दरबार ख़ुशियाँ हैं

हस्सान अहमद आवान

या इलाही मिरा दिलदार सलामत बाशद

हसरत अज़ीमाबादी

भरे सफ़र में घड़ी-भर का आश्ना न मिला

हसनैन जाफ़री

खोए हुए पलों की कोई बात भी तो हो

हसनैन आक़िब

वो मिरे शहर में आता है चला जाता है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

तू नहीं है तो तिरे हमनाम से रिश्ता रक्खा

हाशिम रज़ा जलालपुरी

परिंदा क़ैद में कुल आसमान भूल गया

हाशिम रज़ा जलालपुरी

हादिसा इश्क़ में दरपेश हुआ चाहता है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

जो भी यहाँ हुआ वो बहुत ही बुरा हुआ

हसीर नूरी

अमीर-ए-शहर से मिल कर सज़ाएँ मिलती हैं

हसीब सोज़

किसे हम अपना कहें कोई ग़म-गुसार नहीं

हसीब रहबर

तय मुझ से ज़िंदगी का कहाँ फ़ासला हुआ

हसन निज़ामी

मैं घर से ज़ेहन में कुछ सोचता निकल आया

हसन निज़ामी

उसी ख़ुश-नवा में हैं सब हुनर मुझे पहले था न क़यास भी

हसन नईम

दिल में हो आस तो हर काम सँभल सकता है

हसन नईम

बिछ्ड़ें तो शहर भर में किसी को पता न हो

हसन नईम

कोई ग़मगीं कोई ख़ुश हो कर सदा देता रहा

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

हर ज़ख़्म-ए-दिल से अंजुमन-आराई माँग लो

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

यक़ीन टूट चुका है गुमान बाक़ी है

हसन कमाल

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