यार Poetry (page 5)

ऐ सबा जज़्ब पे जिस दम दिल-ए-नाशाद आया

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

आई ऐ गुल-एज़ार क्या कहना

वज़ीर अली सबा लखनवी

ये मानता हूँ कि सौ बार झूट कहता है

वक़ार ख़ान

वो मेरा यार है पर मेरी मानता नहीं है

वक़ार ख़ान

सिदरत-उल-वस्ल के साए का तलबगार हूँ मैं

वक़ार ख़ान

तक़्सीर क्या है हसरत-ए-दीदार ही तो है

वामिक़ जौनपुरी

हुज़ूर-ए-यार भी आज़ुर्दगी नहीं जाती

वामिक़ जौनपुरी

बर्क़ सर-ए-शाख़-सार देखिए कब तक रहे

वामिक़ जौनपुरी

अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है

वामिक़ जौनपुरी

ख़याल दिल को है उस गुल से आश्नाई का

वलीउल्लाह सरहिंदी इशतियाक़

काबा जाने की हवस शैख़ हमें भी है वले

वलीउल्लाह मुहिब

दैर में का'बे में मयख़ाने में और मस्जिद में

वलीउल्लाह मुहिब

वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह

वलीउल्लाह मुहिब

वहीं जी उठते हैं मुर्दे ये क्या ठोकर से छूना है

वलीउल्लाह मुहिब

उस बुत ने गुलाबी जो उठा मुँह से लगाई

वलीउल्लाह मुहिब

उधर वो बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम क़ातिल है

वलीउल्लाह मुहिब

तुम जानते हो किस लिए वो मुझ से गया लड़

वलीउल्लाह मुहिब

शब-ए-फ़िराक़ न काटे कटे है क्या कीजे

वलीउल्लाह मुहिब

मोहब्बत से तरीक़-ए-दोस्ती से चाह से माँगो

वलीउल्लाह मुहिब

मेरी ख़बर न लेना ऐ यार है तअ'ज्जुब

वलीउल्लाह मुहिब

काफ़िर हुए सनम हम दीं-दार तेरी ख़ातिर

वलीउल्लाह मुहिब

दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें

वलीउल्लाह मुहिब

ऐ हम-नफ़स उस ज़ुल्फ़ के अफ़्साने को मत छेड़

वलीउल्लाह मुहिब

फिर आई फ़स्ल-ए-गुल ऐ यार देखिए क्या हो

वली उज़लत

मुझ क़ब्र से यार क्यूँके जावे

वली उज़लत

मिरे नज़'अ को मत उस से कहो हुआ सो हुआ

वली उज़लत

मैं वो मजनूँ हूँ कि आबाद न उजड़ा समझूँ

वली उज़लत

माह-ए-कामिल हो मुक़ाबिल यार के रू से चे-ख़ुश

वली उज़लत

मग़्ज़-ए-बहार इस बरस उस बिन बचा न था

वली उज़लत

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