यार Poetry (page 6)

ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे

वली उज़लत

ग़ुंचा-ए-दिल मिरा खा कर गुल-ए-ख़ंदाँ मेरा

वली उज़लत

घर यार का हम से दूर पड़ा गई हम से राहत एक तरफ़

वली उज़लत

गर्द-बाद अफ़्सोस का जंगल से है पैदा हनूज़

वली उज़लत

दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब

वली उज़लत

ऐ यार मुझ अफ़सुर्दा-ए-हिज्राँ को पहुँच तू

वली उज़लत

आज दिल बे-क़रार है मेरा

वली उज़लत

याद करना हर घड़ी तुझ यार का

वली मोहम्मद वली

याद करना हर घड़ी उस यार का

वली मोहम्मद वली

किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे

वली मोहम्मद वली

आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है

वली मोहम्मद वली

इश्क़ की राह में यूँ हद से गुज़र मत जाना

वाली आसी

हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं

वाली आसी

आज तक जो भी हुआ उस को भुला देना है

वाली आसी

याद में अपने यार-ए-जानी की

वाजिद अली शाह अख़्तर

याद में अपने यार-ए-जानी की

वाजिद अली शाह अख़्तर

सहे ग़म पए रफ़्तगाँ कैसे कैसे

वाजिद अली शाह अख़्तर

जा बैठते हो ग़ैरों में ग़ैरत नहीं आती

वाजिद अली शाह अख़्तर

बरबाद न कर उस को ज़रा हाथ पे धर ला

वाजिद अली शाह अख़्तर

दम-ए-विसाल ये हसरत रही रही न रही

वजीह सानी

पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

है शाम-ए-अवध गेसू-ए-दिलदार का परतव

वाहिद प्रेमी

अपना नफ़स नफ़स है कि शो'ला कहें जिसे

वाहिद प्रेमी

आइए जल्वा-ए-दीदार के दिखलाने को

वहीद इलाहाबादी

कतरा के गुल्सिताँ से जो सू-ए-क़फ़स चले

वहीद अख़्तर

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