यार Poetry (page 4)

ये हम ने माना कि होगा विसाल-ए-यार नसीब

याक़ूब अली आसी

सौ सौ हैं इल्तिफ़ात तग़ाफ़ुल में यार के

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

सरीर-ए-सल्तनत से आस्तान-ए-यार बेहतर था

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

नहीं मा'लूम अब की साल मय-ख़ाने पे क्या गुज़रा

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

इस क़दर ग़र्क़ लहू में ये दिल-ए-ज़ार न था

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

हक़ मुझे बातिल-आशना न करे

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

का'बा नहीं कि सारी ख़ुदाई को दख़्ल हो

यगाना चंगेज़ी

वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला

यगाना चंगेज़ी

वहशत थी हम थे साया-ए-दीवार-ए-यार था

यगाना चंगेज़ी

साया अगर नसीब हो दीवार-ए-यार का

यगाना चंगेज़ी

रौशन तमाम काबा ओ बुत-ख़ाना हो गया

यगाना चंगेज़ी

न पढ़ा यार ने अहवाल-ए-शिकस्ता मेरा

वज़ीर अली सबा लखनवी

मेरे अशआ'र से मज़मून-ए-रुख़-ए-यार खुला

वज़ीर अली सबा लखनवी

मादूम हुए जाते हैं हम फ़िक्र के मारे

वज़ीर अली सबा लखनवी

हुआ धूप में भी न कम हुस्न-ए-यार

वज़ीर अली सबा लखनवी

आदम से बाग़-ए-ख़ुल्द छुटा हम से कू-ए-यार

वज़ीर अली सबा लखनवी

तुम हर इक रंग में ऐ यार नज़र आते हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में

वज़ीर अली सबा लखनवी

महशर का हमें क्या ग़म इस्याँ किसे कहते हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

कोई सूरत से गर सफ़ा हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल-ए-पुर दाग़ बाग़ किस का है

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज

वज़ीर अली सबा लखनवी

देख कर ख़ुश-रंग उस गुल-पैरहन के हाथ पाँव

वज़ीर अली सबा लखनवी

दाग़-ए-जुनूँ दिमाग़-ए-परेशाँ में रह गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

बुत-परस्ती से न तीनत मिरी ज़िन्हार फिरी

वज़ीर अली सबा लखनवी

बे-ताबी-ए-दिल ने ज़ार-पा कर

वज़ीर अली सबा लखनवी

बच कर कहाँ मैं उन की नज़र से निकल गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

अश्क-उफ़्तादा नज़र आते हैं सारे दरिया

वज़ीर अली सबा लखनवी

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