अब नहीं लौट के आने वाला
घर खुला छोड़ के जाने वाला
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कब लोगों ने अल्फ़ाज़ के पत्थर नहीं फेंके
नाव काग़ज़ की छोड़ दी मैं ने
लिखा है मुझ को भी लिखना पड़ा है
ये आने वाला ज़माना हमें बताएगा
ख़याल उसी की तरफ़ बार बार जाता है
जो भी मिल जाता है घर-बार को दे देता हूँ
वो ज़हर देता तो बद-नाम हो गया होता
मिरी तरफ़ से तो टूटा नहीं कोई रिश्ता
सिलसिला ज़ख़्म ज़ख़्म जारी है