ये दिल ही जानता है फिर कहाँ कहाँ भटके

ये दिल ही जानता है फिर कहाँ कहाँ भटके

बिछड़ के तुम से हम आख़िर कहाँ कहाँ भटके

हमारे पाँव के छाले ही ये समझते हैं

कि तेरे प्यार की ख़ातिर कहाँ कहाँ भटके

तुम्हारी चाँद सी तस्वीर के तसव्वुर में

हमें पता है मुसव्विर कहाँ कहाँ भटके

तुम्हें पता ही नहीं तुम को देखने के बा'द

ग़ज़ल के नाम से शाइ'र कहाँ कहाँ भटके

ख़ुदा ही जाने मिरे ख़्वाब बेच देने के बा'द

मिरी वफ़ाओं के ताजिर कहाँ कहाँ भटके

कभी जो घर से न निकला हो उस को क्या मा'लूम

सफ़र में कितने मुसाफ़िर कहाँ कहाँ भटके

मिला अँधेरे में जो कुछ ख़ुदा बना डाला

ख़ुदा को छोड़ के काफ़िर कहाँ कहाँ भटके

कहीं क़रार न आया कहीं सुकूँ न मिला

बिछड़ के घर से मुहाजिर कहाँ कहाँ भटके

(683) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ye Dil Hi Jaanta Hai Phir Kahan Kahan BhaTke In Hindi By Famous Poet Anubhav Gupta. Ye Dil Hi Jaanta Hai Phir Kahan Kahan BhaTke is written by Anubhav Gupta. Complete Poem Ye Dil Hi Jaanta Hai Phir Kahan Kahan BhaTke in Hindi by Anubhav Gupta. Download free Ye Dil Hi Jaanta Hai Phir Kahan Kahan BhaTke Poem for Youth in PDF. Ye Dil Hi Jaanta Hai Phir Kahan Kahan BhaTke is a Poem on Inspiration for young students. Share Ye Dil Hi Jaanta Hai Phir Kahan Kahan BhaTke with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.