अब ए'तिबार पे जी चाहता तो है लेकिन
पुराने ख़ौफ़ दिलों से कहाँ निकलते हैं
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लगा हो दिल तो ख़यालात कब बदलते हैं
इक पल में क्या कुछ बदल गया जब बे-ख़बरों को ख़बर हुई
एक नया वाक़िआ इश्क़ में क्या हो गया
ये रात ऐसी हवाएँ कहाँ से लाती है
ये रोग लगा है अजब हमें जो जान भी ले कर टला नहीं
अपनी ख़ुशी से मुझे तेरी ख़ुशी थी अज़ीज़