Love Poetry (page 407)
मलते हैं हाथ, हाथ लगेंगे अनार कब
आग़ा अकबराबादी
मद्दाह हूँ मैं दिल से मोहम्मद की आल का
आग़ा अकबराबादी
क्या बनाए साने-ए-क़ुदरत ने प्यारे हाथ पाँव
आग़ा अकबराबादी
ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा
आग़ा अकबराबादी
जीते-जी के आश्ना हैं फिर किसी का कौन है
आग़ा अकबराबादी
जा लड़ी यार से हमारी आँख
आग़ा अकबराबादी
हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं
आग़ा अकबराबादी
दिल में तिरे ऐ निगार क्या है
आग़ा अकबराबादी
दौर साग़र का चले साक़ी दोबारा एक और
आग़ा अकबराबादी
चाहत ग़म्ज़े जता रही है
आग़ा अकबराबादी
बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम
आग़ा अकबराबादी
आँखों पे वो ज़ुल्फ़ आ रही है
आग़ा अकबराबादी
यही नहीं कि फ़क़त प्यार करने आए हैं
आग़ा निसार
हिन्दोस्ताँ
आफ़ताब राईस पानीपती
दीवाली
आफ़ताब राईस पानीपती
चढ़ा दिया है भगत-सिंह को रात फाँसी पर
आफ़ताब राईस पानीपती
भगवान कृष्ण के चरनों में श्रधा के फूल चढ़ाने को
आफ़ताब राईस पानीपती
बाबा गाँधी
आफ़ताब राईस पानीपती
अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
आफ़ताबुद्दौला लखनवी क़लक़
क्या ज़मीं क्या आसमाँ कुछ भी नहीं
आफ़ाक़ सिद्दीक़ी
सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है
आदिल रज़ा मंसूरी
ना-कर्दा गुनाह
आदिल रज़ा मंसूरी
मैं
आदिल रज़ा मंसूरी
वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है
आदिल रज़ा मंसूरी
सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है
आदिल रज़ा मंसूरी
एक इक लम्हे को पलकों पे सजाता हुआ घर
आदिल रज़ा मंसूरी
चाँद तारे बना के काग़ज़ पर
आदिल रज़ा मंसूरी
आँधियाँ ग़म की चलीं और कर्ब-बादल छा गए
अाबिदा उरूज
गुज़रे जो अपने यारों की सोहबत में चार दिन
ए जी जोश