Love Poetry (page 406)
हम न इस टोली में थे यारो न उस टोली में थे
आल-ए-अहमद सूरूर
हम बर्क़-ओ-शरर को कभी ख़ातिर में न लाए
आल-ए-अहमद सूरूर
हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सूरूर
हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है
आल-ए-अहमद सूरूर
ग़ैरत-ए-इश्क़ का ये एक सहारा न गया
आल-ए-अहमद सूरूर
फ़ुग़ान-ए-दर्द में भी दर्द की ख़लिश ही नहीं
आल-ए-अहमद सूरूर
एक दीवाने को इतना ही शरफ़ क्या कम है
आल-ए-अहमद सूरूर
दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें
आल-ए-अहमद सूरूर
दास्तान-ए-शौक़ कितनी बार दोहराई गई
आल-ए-अहमद सूरूर
आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी
आल-ए-अहमद सूरूर
सनम-परस्ती करूँ तर्क क्यूँकर ऐ वाइ'ज़
आग़ा अकबराबादी
रक़ीब क़त्ल हुआ उस की तेग़-ए-अबरू से
आग़ा अकबराबादी
किसी सय्याद की पड़ जाए न चिड़िया पे नज़र
आग़ा अकबराबादी
जी चाहता है उस बुत-ए-काफ़िर के इश्क़ में
आग़ा अकबराबादी
इन परी-रूयों की ऐसी ही अगर कसरत रही
आग़ा अकबराबादी
हाथ दोनों मिरी गर्दन में हमाइल कीजे
आग़ा अकबराबादी
हमें तो उन की मोहब्बत है कोई कुछ समझे
आग़ा अकबराबादी
देखो तो एक जा पे ठहरती नहीं नज़र
आग़ा अकबराबादी
बुत नज़र आएँगे माशूक़ों की कसरत होगी
आग़ा अकबराबादी
वो कहते हैं उट्ठो सहर हो गई
आग़ा अकबराबादी
तिरे जलाल से ख़ुर्शीद को ज़वाल हुआ
आग़ा अकबराबादी
सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता
आग़ा अकबराबादी
शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना
आग़ा अकबराबादी
सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया
आग़ा अकबराबादी
पाँव फिर होवेंगे और दश्त-ए-मुग़ीलाँ होगा
आग़ा अकबराबादी
नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं
आग़ा अकबराबादी
निगाहों में इक़रार सारे हुए हैं
आग़ा अकबराबादी
नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ
आग़ा अकबराबादी
मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त
आग़ा अकबराबादी
मज़ा है इम्तिहाँ का आज़मा ले जिस का जी चाहे
आग़ा अकबराबादी