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पैकर
निकालोगे जो भी मअ'नी
वो सब तुम्हारे हैं
मेरा क्या
मैं तो हूँ
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दिन के सीने पे शाम का पत्थर
सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है
दो अजनबी
ना-कर्दा गुनाह
वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है
पाँव पत्तों पे धीरे से धरता हुआ
पस-ओ-पेश
मिरी ख़ामोशियों की झील में फिर
एक इक लम्हे को पलकों पे सजाता हुआ घर
रिवायत
लिबास