तमाम उम्र गँवा दी जिसे भुलाने में
वो निस्फ़ माज़ी का क़िस्सा था निस्फ़ हाल का था
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मरीज़-ए-दिल
मोहब्बत माँ से और बीवी से जिस का प्यार होता है
लिक्खेंगे न इस हार के अस्बाब कहाँ तक
प्रोफ़ेसर ही जब आते हों हफ़्ता-वार कॉलेज में
ए'तिराफ़
इंकिशाफ़
वो एक शख़्स कि बाइस मिरे ज़वाल का था
इक डॉक्टर मरीज़ को समझा रहा था यूँ
बेगम
यूँ तूँ ख़ासी देर में जा कर इश्क़ का शोला भड़का है
वो डिग्री की बजाए मेम ले कर लौट आया है
सुख़न के सारे सलीक़े ज़बाँ में रखता है