आँख भर इश्क़ और बदन भर चाह
शुक्र लब भर गिला ज़बाँ भर था
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तुझ में गर बारिश समुंदर के बराबर है तो क्या
तिरा ख़याल मिरे दिल में कैसे घर करता
क्या मिला जुज़ सुकूत-ए-बे-पायाँ
ज़र्रा ज़र्रा कर्बला मंज़र-ब-मंज़र तिश्नगी
सवार-ए-वक़्त है वो फ़ासलों से आगे है
आबाद है इस दिल का जहाँ जिस के क़दम से
क्या रात कटी अपनी उलझते हुए जाँ से
फ़ासला यूँ तो बस मकाँ भर था