दूरियाँ सारी सिमट कर रह गईं ऐसा लगा

दूरियाँ सारी सिमट कर रह गईं ऐसा लगा

मूँद ली जब आँख तो सीने से कोई आ लगा

किस क़दर अपनाइयत उस अजनबी बस्ती में थी

गो कि हर चेहरा था बेगाना मगर अपना लगा

पास से हो कर जो वो जाता तो ख़ुश होते मगर

उस का कतरा कर गुज़रना भी हमें अच्छा लगा

उस घड़ी क्या कैफ़ियत दिल की थी कुछ हम भी सुनें

तू ने पहली बार जब देखा हमें कैसा लगा

जिस क़दर गुंजान आबादी थी उस के शहर की

जाने क्यूँ हर शख़्स हम को इस क़दर तन्हा लगा

जिस्म का आतिश-कदा ले कर तो पहुँचे थे वहाँ

हाथ जब उस का छुआ तो बर्फ़ से ठंडा लगा

जब किसी शीरीं-दहन से गुफ़्तुगू की ऐ 'क़मर'

अपना लहजा भी हमें उस की तरह मीठा लगा

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In Hindi By Famous Poet Qamar Iqbal. is written by Qamar Iqbal. Complete Poem in Hindi by Qamar Iqbal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.