ये माजरा-ए-मोहब्बत समझ में आ न सका
वो हाथ आए तो मैं हाथ उन्हें लगा न सका
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(566) Peoples Rate This
ज़रा चश्म-ए-करम से देख लो तुम
क़सम ही नहीं है फ़क़त इस का शेवा
जबकि दुश्मन हो राज़ दाँ अपना
बे-पर्दा उस का चेहरा-ए-पुर-नूर तो हुआ
रोने के बदले अपनी तबाही पे हँस दिया
तेरे नालों से कोई बदनाम होता जाएगा