गुल Poetry (page 89)

इसी लिए भी नए सफ़र से बंधे हुए हैं

अफ़ज़ल गौहर राव

ये हक़ीक़त है वो कमज़ोर हुआ करती हैं

अफ़ज़ल इलाहाबादी

यही बहुत थे मुझे नान ओ आब ओ शम्अ ओ गुल

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

उसे अजब था ग़ुरूर-ए-शगुफ़्त-ए-रुख़्सारी

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

किताब-ए-ख़ाक पढ़ी ज़लज़ले की रात उस ने

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

कमान-ए-शाख़ से गुल किस हदफ़ को जाते हैं

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

सहाब-ए-सब्ज़ न ताऊस-ए-नीलमीं लाया

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

कोई न हर्फ़-ए-नवेद-ओ-ख़बर कहा उस ने

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

कभी न ख़ुद को बद-अंदेश-ए-दश्त-ओ-दर रक्खा

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

गिरा तो गिर के सर-ए-ख़ाक-ए-इब्तिज़ाल आया

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

बहुत न हौसला-ए-इज़्ज़-ओ-जाह मुझ से हुआ

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

कहो बुलबुल को ले जावे चमन से आशियाँ अपना

आफ़ताब शाह आलम सानी

जब वो नज़रें दो-चार होती हैं

आफ़ताब शाह आलम सानी

गो सुध नहीं उस शोख़ सितमगर ने सँभाली

आफ़ताब शाह आलम सानी

कभी ख़ुद को दर्द-शनास करो कभी आओ ना

आफ़ताब इक़बाल शमीम

हाँ उसी दिन धूप में हरियालियाँ शामिल हुईं

आफ़ताब इक़बाल शमीम

इक फ़ना के घाट उतरा एक पागल हो गया

आफ़ताब इक़बाल शमीम

दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें

आफ़ताब इक़बाल शमीम

हाए वो जिस की उम्मीदें हों ख़िज़ाँ पर मौक़ूफ़

अफ़सर मेरठी

हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती है

अफ़रोज़ आलम

जो बन-सँवर के वो इक माह-रू निकलता है

अादिल रशीद

सड़कों पर सूरज उतरा

आदिल मंसूरी

फैले हुए हैं शहर में साए निढाल से

आदिल मंसूरी

आशिक़ थे शहर में जो पुराने शराब के

आदिल मंसूरी

वो पौ फटी वो किरन से किरन में आग लगी

अदीब सहारनपुरी

नग़्मा-ए-इश्क़-ए-बुताँ और ज़रा आहिस्ता

अदीब सहारनपुरी

इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

अदीब सहारनपुरी

इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

अदीब सहारनपुरी

अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूट ही बोलो

अदा जाफ़री

क्यूँ

अदा जाफ़री

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