गुल Poetry (page 90)

वो लम्हा कि ख़ामोशी-ए-शब नग़्मा-सरा थी

अदा जाफ़री

निगाह ओट रहूँ कासा-ए-ख़बर में रहूँ

अदा जाफ़री

कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा

अदा जाफ़री

ख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा था

अदा जाफ़री

कहते हैं कि अब हम से ख़ता-कार बहुत हैं

अदा जाफ़री

जब दिल की रहगुज़र पे तिरा नक़्श-ए-पा न था

अदा जाफ़री

हर गाम सँभल सँभल रही थी

अदा जाफ़री

अचानक दिलरुबा मौसम का दिल-आज़ार हो जाना

अदा जाफ़री

आँखों में रूप सुब्ह की पहली किरन सा है

अदा जाफ़री

आगे हरीम-ए-ग़म से कोई रास्ता न था

अदा जाफ़री

क्यूँ असीर-ए-गेसू-ए-ख़म-दार-ए-क़ातिल हो गया

अबुल कलाम आज़ाद

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

गोया चमन चमन न था

अबु मोहम्मद सहर

चाँद का रक़्स सितारों का फ़ुसूँ माँगती है

अबु मोहम्मद सहर

तुझ हुस्न के बाग़ में सिरीजन

आबरू शाह मुबारक

क़द सर्व चश्म नर्गिस रुख़ गुल दहान ग़ुंचा

आबरू शाह मुबारक

जलता है अब तलक तिरी ज़ुल्फ़ों के रश्क से

आबरू शाह मुबारक

ये तिरी दुश्नाम के पीछे हँसी गुलज़ार सी

आबरू शाह मुबारक

यार रूठा है हम सें मनता नहिं

आबरू शाह मुबारक

तूफ़ाँ है शैख़ क़हरिया है

आबरू शाह मुबारक

नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा

आबरू शाह मुबारक

क्यूँ बंद सब खुले हैं क्यूँ चीर अटपटा है

आबरू शाह मुबारक

क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला

आबरू शाह मुबारक

जलते थे तुम कूँ देख के ग़ैर अंजुमन में हम

आबरू शाह मुबारक

इंसान है तो किब्र सीं कहता है क्यूँ अना

आबरू शाह मुबारक

हम नीं सजन सुना है उस शोख़ के दहाँ है

आबरू शाह मुबारक

फ़जर उठ ख़्वाब सीं गुलशन में जब तुम ने मली अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

दिल नीं पकड़ी है यार की सूरत

आबरू शाह मुबारक

नई हवा में कोई रंग-ए-काएनात में गुम

अबरार किरतपुरी

किस का है जुर्म किस की ख़ता सोचना पड़ा

अबरार आज़मी

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