पाप Poetry (page 8)

जान ले ले न ज़ब्त-ए-आह कहीं

बकुल देव

गई यक-ब-यक जो हवा पलट नहीं दिल को मेरे क़रार है

ज़फ़र

दमक उठी है फ़ज़ा माहताब-ए-ख़्वाब के साथ

बद्र-ए-आलम ख़लिश

ग़रीब शहर

अज़ीज़ क़ैसी

मैं तो हस्ती को समझता हूँ सरासर इक गुनाह

अज़ीज़ लखनवी

आज मुक़ाबला है सख़्त मीर-ए-सिपाह के लिए

अज़ीज़ हामिद मदनी

रस्म-ए-अंदेशा से फ़ारिग़ हुए हम

आज़र तमन्ना

दरमियान-ए-गुनाह-ओ-सवाब आदमी

आतिफ़ ख़ान

काश समझदार न बनूँ

अतीया दाऊद

अपनी बेटी के नाम

अतीया दाऊद

तआरुफ़

असरार-उल-हक़ मजाज़

सीने में उन के जल्वे छुपाए हुए तो हैं

असरार-उल-हक़ मजाज़

कहाँ तलाश में जाऊँ कि जुस्तुजू तू है

आसिम वास्ती

गुज़र चुका है जो लम्हा वो इर्तिक़ा में है

आसिम वास्ती

दैर-ओ-हरम भी आए कई इस सफ़र के बीच

अाशा प्रभात

लुत्फ़ गुनाह में मिला और न मज़ा सवाब में

असर सहबाई

जिसे न मेरी उदासी का कुछ ख़याल आया

असअ'द बदायुनी

'आरज़ू' जाम लो झिजक कैसी

आरज़ू लखनवी

तुम्हें क्या काम नालों से तुम्हें क्या काम आहों से

आरज़ू लखनवी

जहाँ कि है जुर्म एक निगाह करना

आरज़ू लखनवी

मंज़िल है अपनी अपनी 'क़लक़' अपनी अपनी गोर

अरशद अली ख़ान क़लक़

बे-अब्र रिंद पीते नहीं वाइ'ज़ो शराब

अरशद अली ख़ान क़लक़

वा'दा-ख़िलाफ़ कितने हैं ऐ रश्क-ए-माह आप

अरशद अली ख़ान क़लक़

हम तो हों दिल से दूर रहें पास और लोग

अरशद अली ख़ान क़लक़

डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में

अरशद अली ख़ान क़लक़

वो ले के हौसला-ए-अज़्म-ए-बे-पनाह चले

अर्श मलसियानी

दर्द का हाल आह से पूछो

अर्श मलसियानी

मुहीत-ए-रहमत है जोश-अफ़ज़ा हुई है अब्र-ए-सख़ा की आमद

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

इस में क्या शक है कि आवारा हूँ मैं

अनवर शऊर

रहते हुए क़रीब जुदा हो गए हो तुम

अनवर साबरी

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