हाल Poetry (page 36)

हदीस-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-शम्-ओ-परवाना नहीं कहते

फ़िगार उन्नावी

ख़राब-हाल हूँ हर हाल में ख़राब रहा

फ़ज़लुर्रहमान

रातों के ख़ौफ़ दिन की उदासी ने क्या दिया

फ़ज़्ल ताबिश

जिन ख़्वाबों से नींद उड़ जाए ऐसे ख़्वाब सजाए कौन

फ़ज़्ल ताबिश

तुम्हीं इक नहीं जाँ-सेताँ और भी हैं

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

तुम ने पूछा है तो अहवाल बता देते हैं

फ़ाज़िल जमीली

अश्क आया आँख में जलता हुआ

फ़ाज़िल अंसारी

ऐ कहकशाँ गुज़र के तिरी रहगुज़र से हम

फ़ाज़िल अंसारी

है जो ख़ामोश बुत-ए-होश-रुबा मेरे बाद

फ़ज़ल हुसैन साबिर

उदास देख के वजह-ए-मलाल पूछेगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

रूह और बदन दोनों दाग़ दाग़ हैं यारो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ग़म दुनिया के याद जब आएँ उस की याद भी आने दो

फ़े सीन एजाज़

आँख और नींद के रिश्ते मुझे वापस कर दे

फ़े सीन एजाज़

हाथ में अपने अभी तक एक साग़र ही तो है

फ़ातिमा वसीया जायसी

दिल में इस का ख़याल क्यूँ आया

फ़ातिमा वसीया जायसी

कभी तो हर्फ़-ए-दुआ यूँ ज़बाँ तलक आए

फ़सीहुल्ला नक़ीब

वो भी गुमराह हो गया होगा

फ़रताश सय्यद

सितारे बोती रहीं नींद से तही आँखें

फ़ारूक़ नाज़की

मातम-ए-नीम-ए-शब

फ़ारूक़ नाज़की

बस्ती से दूर जा के कोई रो रहा है क्यूँ

फ़ारूक़ नाज़की

ये सौदा इश्क़ का आसान सा हे

फ़ारूक़ बख़्शी

तमाम शहर में उस जैसा ख़स्ता-हाल न था

फ़ारूक़ बख़्शी

यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा

फ़ारिग़ बुख़ारी

तेरे सूरज को तिरी शाम से पहचानते हैं

फ़रहत एहसास

नहीं देखता दिन जिसे चश्म-ए-शब देखती है

फ़रहत एहसास

मैं तमाम गर्द-ओ-ग़ुबार हूँ मुझे मेरी सूरत-ए-हाल दे

फ़रहत एहसास

लोग यूँ जाते नज़र आते हैं मक़्तल की तरफ़

फ़रहत एहसास

इस तरह आता हूँ बाज़ारों के बीच

फ़रहत एहसास

हम न प्यासे हैं न पानी के लिए आए हैं

फ़रहत एहसास

गर अपने आप में इंसान बढ़ता जा रहा है

फ़रहत एहसास

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