हाल Poetry (page 37)

हमें भी अपनी तबाही पे रंज होता है

फ़रीद जावेद

हमारे सामने बेगाना-वार आओ नहीं

फ़रीद जावेद

हमारे सामने बेगाना-वार आओ नहीं

फ़रीद जावेद

यक़ीन

फ़रीद इशरती

अफ़्साना-ए-शब-रंग

फ़रीद इशरती

ना-मेहरबानियों का गिला तुम से क्या करें

फ़ानी बदायुनी

मुस्कुराए वो हाल-ए-दिल सुन कर

फ़ानी बदायुनी

वो जी गया जो इश्क़ में जी से गुज़र गया

फ़ानी बदायुनी

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

फ़ानी बदायुनी

क़िस्सा-ए-ज़ीस्त मुख़्तसर करते

फ़ानी बदायुनी

क्या छुपाते किसी से हाल अपना

फ़ानी बदायुनी

किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला

फ़ानी बदायुनी

ख़ुद मसीहा ख़ुद ही क़ातिल हैं तो वो भी क्या करें

फ़ानी बदायुनी

जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहाँ से दूर

फ़ानी बदायुनी

जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है

फ़ानी बदायुनी

दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है

फ़ानी बदायुनी

दिल की तरफ़ हिजाब-ए-तकल्लुफ़ उठा के देख

फ़ानी बदायुनी

दिल की काया ग़म ने वो पल्टी कि तुझ सा बन गया

फ़ानी बदायुनी

बेदाद के ख़ूगर थे फ़रियाद तो क्या करते

फ़ानी बदायुनी

बे-अजल काम न अपना किसी उनवाँ निकला

फ़ानी बदायुनी

हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया

फ़ना निज़ामी कानपुरी

मिरी लौ लगी है तुझ से ग़म-ए-ज़िंदगी मिटा दे

फ़ना बुलंदशहरी

किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

हाँ वही इश्क़-ओ-मोहब्बत की जिला होती है

फ़ना बुलंदशहरी

मज़दूर औरतें

फख्र ज़मान

कुछ बात नहीं जिस्म अगर मेरा जला है

फख्र ज़मान

जानता हूँ कि कई लोग हैं बेहतर मुझ से

फ़ैज़ी

काँच के शहर में पत्थर न उठाओ यारो

फ़ैज़ुल हसन

ये मौसम-ए-गुल गरचे तरब-ख़ेज़ बहुत है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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