जाम Poetry (page 13)

दुरुस्त है कि मिरा हाल अब ज़ुबूँ भी नहीं

सफ़दर मीर

मुसव्विर अपने तसव्वुर का ढूँढता है दवाम

सईदुल ज़फर चुग़ताई

आदमी का नशा

सईदुद्दीन

मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़

सबा अकबराबादी

हुजूम-ए-ग़म है क़ल्ब ग़म-ज़दा है

सबा अकबराबादी

सामने उन को पाया तो हम खो गए आज फिर हसरत-ए-गुफ़्तुगू रह गई

सबा अफ़ग़ानी

मोहतसिब तस्बीह के दानों पे ये गिनता रहा

साइल देहलवी

ख़िज़ाँ का जो गुलशन से पड़ जाए पाला

साइल देहलवी

बसा-औक़ात आ जाते हैं दामन से गरेबाँ में

साइल देहलवी

ये एहतियात इश्क़ पे लाज़िम सदा रहे

रोहित सोनी ‘ताबिश’

गरचे मिरे ख़ुलूस से वो बे-ख़बर न था

रोहित सोनी ‘ताबिश’

ज़र्फ़-ए-वज़ू है जाम है इक ख़म है इक सुबू

रियाज़ ख़ैराबादी

जाम है तौबा-शिकन तौबा मिरी जाम-शिकन

रियाज़ ख़ैराबादी

हम जाम-ए-मय के भी लब तर चूसते नहीं

रियाज़ ख़ैराबादी

भर भर के जाम बज़्म में छलकाए जाते हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की

रियाज़ ख़ैराबादी

उफ़ रे उभार उफ़ रे ज़माना उठान का

रियाज़ ख़ैराबादी

परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है

रियाज़ ख़ैराबादी

मुझ को लेना है तिरे रंग-ए-हिना का बोसा

रियाज़ ख़ैराबादी

कोई पूछे न हम से क्या हुआ दिल

रियाज़ ख़ैराबादी

जो हम आए तो बोतल क्यूँ अलग पीर-ए-मुग़ाँ रख दी

रियाज़ ख़ैराबादी

जिस दिन से हराम हो गई है

रियाज़ ख़ैराबादी

होगी वो दिल में जो ठानी जाएगी

रियाज़ ख़ैराबादी

हंस के पैमाना दिया ज़ालिम ने तरसाने के बा'द

रियाज़ ख़ैराबादी

गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के

रियाज़ ख़ैराबादी

सदमे गुज़रे ईज़ा गुज़री

रिन्द लखनवी

रक्खो ख़िदमत में मुझ से काम तो लो

रिन्द लखनवी

मुझ बला-नोश को तलछट भी है काफ़ी साक़ी

रिन्द लखनवी

हैरान सी है भचक रही है

रिन्द लखनवी

दिल किस से लगाऊँ कहीं दिलबर नहीं मिलता

रिन्द लखनवी

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