जाम Poetry (page 11)

बादा-ओ-जाम के रहे ही नहीं

सरफ़राज़ ख़ालिद

ऐसे लगे है नौकरी माल-ए-हराम के बग़ैर

सरफ़राज़ शाहिद

ऐसे लगे है नौकरी माल-ए-हराम के बग़ैर

सरफ़राज़ शाहिद

जिसे तू ने समझा है ज़िंदगी उसी इंक़लाब का नाम है

सरीर काबिरी

मैं वो आतिश-ए-नफ़स हूँ आग अभी

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

इलाही ख़ैर हो वो आज क्यूँ कर तन के बैठे हैं

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

आ किधर है तू साक़ी-ए-मख़मूर

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

लफ़्ज़ों का ये ख़ज़ाना तिरे नाम कब हुआ

सदार आसिफ़

यूँ अकेला दश्त-ए-ग़ुर्बत में दिल-ए-नाकाम था

साक़िब लखनवी

बग़दाद

सलमान अंसारी

वुसअ'त-ए-दामान-ए-दिल को ग़म तुम्हारा मिल गया

सालिक लखनवी

मंज़िल-ए-बे-जहत की ख़ैर सई-ए-सफ़र है राएगाँ

सलीम अहमद

मुझ को तो ख़ून-ए-दिल ही पीना है

सलाम संदेलवी

हुई सुब्ह जाम खनक उठे हुई शाम नग़्मे बिखर गए

सलाम संदेलवी

शुक्रिया ऐ गर्दिश-ए-जाम-ए-शराब

सलाम मछली शहरी

अवाम

सलाम मछली शहरी

सुब्ह-दम भी यूँ फ़सुर्दा हो गया

सलाम मछली शहरी

हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है

सलाम मछली शहरी

क़ाफ़िला जाता है साग़र की तरफ़ रिंदों का

सख़ी लख़नवी

हम पे जौर-ओ-सितम के क्या मअनी

सख़ी लख़नवी

निखरा ख़िज़ाँ से रंग-ए-बहाराँ है इन दिनों

सज्जाद बाक़र रिज़वी

क्या इश्क़ का लें नाम हवस आम नहीं है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

'बाक़र' निशाना-ए-ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम तो हो

सज्जाद बाक़र रिज़वी

फ़क़ीरी में

साजिदा ज़ैदी

बर-सर-ए-दर्द ज़माने का भी सोचा जाए

साइम जी

वो आरिज़ गुलाबी वो गेसू घनेरे

सैफ़ी प्रेमी

सुब्ह-ए-इशरत ज़िंदगी की शाम हो कर रह गई

सैफ़ बिजनोरी

मैं नहीं तो क्या

साहिर लुधियानवी

ऐ नई नस्ल

साहिर लुधियानवी

तोड़ लेंगे हर इक शय से रिश्ता तोड़ देने की नौबत तो आए

साहिर लुधियानवी

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