हुई सुब्ह जाम खनक उठे हुई शाम नग़्मे बिखर गए
वो हसीन दिन भी थे किस क़दर जो तुम्हारे साथ गुज़र गए
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बहुत उम्मीद थी मंज़िल पे जा कर चैन पाएँगे
बिजली गिरेगी सेहन-ए-चमन में कहाँ कहाँ
रह-ए-हयात चमक उठ्ठे कहकशाँ की तरह
ख़ुशी के फूल खिले थे तुम्हारे साथ कभी
है तिश्ना-लबी लेकिन हम क्यूँ उसे ज़हमत दें
बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द
यूँ बाग़बाँ ने मोहर लगा दी ज़बान पर
दिल की धड़कन भी है उन को नागवार
क्या इसी को बहार कहते हैं
तरब-आफ़रीं है कितना सर-ए-शाम ये नज़ारा
शबनम ने रो के जी ज़रा हल्का तो कर लिया
चंद तिनकों के सिवा क्या था नशेमन में मिरे