चंद तिनकों के सिवा क्या था नशेमन में मिरे
बर्क़-ए-नादाँ को समझ आई बहुत देर के ब'अद
Allama Iqbal
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(460) Peoples Rate This
आए जो चंद तिनके क़फ़स में सबा के साथ
हमेशा दूर के जल्वे फ़रेब देते हैं
रह-ए-हयात चमक उठ्ठे कहकशाँ की तरह
मता-ए-ग़म मिरे अश्कों ही तक नहीं महदूद
क्या इसी को बहार कहते हैं
हुई सुब्ह जाम खनक उठे हुई शाम नग़्मे बिखर गए
तरब-आफ़रीं है कितना सर-ए-शाम ये नज़ारा
ये तो मालूम है उन तक न सदा पहुँचेगी
बिजली गिरेगी सेहन-ए-चमन में कहाँ कहाँ
बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द
गुलों के रूप में बिखरे हैं हर तरफ़ काँटे
ख़ुशी के फूल खिले थे तुम्हारे साथ कभी