जाम Poetry (page 15)

तल्ख़ी-ए-ग़म का जो है मुकम्मल जवाब ला

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

क्यूँ न हम याद किसी को सहर-ओ-शाम करें

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

तल्ख़-ओ-तुर्श

राही मासूम रज़ा

साक़ी भले फटकने न दे पास जाम के

राहील फ़ारूक़

अंजाम-ए-वफ़ा भी देख लिया अब किस लिए सर ख़म होता है

इक़बाल सुहैल

गर्दिशों में भी हम रास्ता पा गए

इक़बाल सफ़ी पूरी

नज़र नज़र में तमन्ना क़दम क़दम पे गुरेज़

इक़बाल माहिर

इश्क़ इतना कमाल रखता है

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

ज़ोफ़ आता है दिल को थाम तो लो

इंशा अल्लाह ख़ान

तर्क कर अपने नंग-ओ-नाम को हम

इंशा अल्लाह ख़ान

नादाँ कहाँ तरब का सर-अंजाम और इश्क़

इंशा अल्लाह ख़ान

मुझे छेड़ने को साक़ी ने दिया जो जाम उल्टा

इंशा अल्लाह ख़ान

मिल मुझ से ऐ परी तुझे क़ुरआन की क़सम

इंशा अल्लाह ख़ान

मिल गए पर हिजाब बाक़ी है

इंशा अल्लाह ख़ान

लब पे आई हुई ये जान फिरे

इंशा अल्लाह ख़ान

काश अब्र करे चादर-ए-महताब की चोरी

इंशा अल्लाह ख़ान

दीवार फाँदने में देखोगे काम मेरा

इंशा अल्लाह ख़ान

कोई बाग़ सा सजा हुआ मिरे सामने

इनाम नदीम

फिर आस-पास से दिल हो चला है मेरा उदास

इम्तियाज़ अली अर्शी

अपने लहू में ज़हर भी ख़ुद घोलता हूँ मैं

इमरान-उल-हक़ चौहान

हमारी मोहब्बत नुमू से निकल कर कली बन गई थी मगर थी नुमू में

इमरान शमशाद

लोग जब तेरा नाम लेते हैं

इम्दाद इमाम असर

क़द्र-दाँ कोई न असफ़ल है न आ'ला अपना

इमदाद अली बहर

मैं सियह-रू अपने ख़ालिक़ से जो ने'मत माँगता

इमदाद अली बहर

किया सलाम जो साक़ी से हम ने जाम लिया

इमदाद अली बहर

जाते है ख़ानक़ाह से वाइज़ सलाम है

इमदाद अली बहर

जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए

इमदाद अली बहर

गर्दिश-ए-चर्ख़ से क़याम नहीं

इमदाद अली बहर

बग़ैर यार गवारा नहीं कबाब शराब

इमदाद अली बहर

आश्ना कोई बा-वफ़ा न मिला

इमदाद अली बहर

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