मौसम Poetry (page 14)

दिए कितने अँधेरी उम्र के रस्तों में आते हैं

सफ़दर सिद्दीक़ रज़ी

ये हक़ीक़त है कि होता है असर बातों में

सईद राही

पसीने पसीने हुए जा रहे हो

सईद राही

फ़सील-ए-ज़ात में दर तो तिरी इनायत है

सईद नक़वी

बे-सबब ठीक नहीं घर से निकल कर जाना

सईद आरिफ़ी

सुलग रहा है चमन में बहार का मौसम

सईद अहमद अख़्तर

ये हादसा भी तो कुछ कम न था सबा के लिए

सईद अहमद अख़्तर

डूबते सूरज की सरगोशी

सईद अहमद

लफ़्ज़ों को सजा कर जो कहानी लिखना

सदफ़ जाफ़री

क्यूँ सदा पहने वो तेरा ही पसंदीदा लिबास

सदा अम्बालवी

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

सदा अम्बालवी

ज़ुल्फ़ की शाम सुब्ह चेहरे की

साबिर दत्त

फिर लाई है बरसात तिरी याद का मौसम

साबिर दत्त

मौसमों का जवाब दे दीजे

साबिर दत्त

हैरान हूँ दो आँखों से क्या देख रहा हूँ

साबिर दत्त

अब उठाओ नक़ाब आँखों से

साबिर दत्त

मुझ से पहले मिरे वतीरे देख

साबिर अदीब

तिरे तसव्वुर की धूप ओढ़े खड़ा हूँ छत पर

साबिर

तुम्हारे आलम से मेरा आलम ज़रा अलग है

साबिर

मुख़्तसर ही सही मयस्सर है

साबिर

वो इस अदा से दुआ करेगा

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

आँखों में वो आएँ तो हँसाते हैं मुझे ख़्वाब

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ

सबा अख़्तर

उदास मौसम के रतजगों में

सादुल्लाह शाह

अब्र उतरा है चार-सू देखो

सादुल्लाह शाह

क्यूँ अंधेरों का मुसाफ़िर है मुक़द्दर अपना

रिफ़अतुल क़ासमी

शहर-ए-शोर-ओ-शर तन्हा घर के बाम-ओ-दर तन्हा

रिफ़अत सरोश

हंगामे से वहशत होती है तन्हाई में जी घबराए है

रिफ़अत सरोश

पहली बरसात की घटा छाई

रिफ़अत अल हुसैनी

जो सोचता हूँ अगर वो हवा से कह जाऊँ

रियाज़ मजीद

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