पत्थर Poetry (page 17)

नाव काग़ज़ की सही कुछ तो नज़र से गुज़रे

सादुल्लाह कलीम

मिरे सिमटे लहू का इस्तिआरा ले गया कोई

रियाज़ लतीफ़

जाल रगों का गूँज लहू की साँस के तेवर भूल गए

रियाज़ लतीफ़

गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं

रियाज़ लतीफ़

मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे

रियाज़ ख़ैराबादी

काफ़िर बुतों के नाम हों क्यूँकर तमाम हिफ़्ज़

रियाज़ ख़ैराबादी

जो पिलाए वो रहे यारब मय-ओ-साग़र से ख़ुश

रियाज़ ख़ैराबादी

हर एक जिस्म पे बस एक ही से गहने लगे

रिन्द साग़री

तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे

रिन्द लखनवी

जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले

रिन्द लखनवी

इक परी का फिर मुझे शैदा किया

रिन्द लखनवी

दिल किस से लगाऊँ कहीं दिलबर नहीं मिलता

रिन्द लखनवी

चलती रही उस कूचे में तलवार हमेशा

रिन्द लखनवी

रात दिन महबूस अपने ज़ाहिरी पैकर में हूँ

रियाज़ मजीद

निशान क़ाफ़ला-दर-क़ाफ़ला रहेगा मिरा

रियाज़ मजीद

ख़ुद में झाँका तो अजब मंज़र नज़र आया मुझे

रियाज़ मजीद

हम फ़लक के आदमी थे साकिनान-ए-क़र्या-ए-महताब थे

रियाज़ मजीद

छुपे हुए थे जो नक़्द-ए-शुऊ'र के डर से

रियाज़ मजीद

मैं कार-आमद हूँ या बे-कार हूँ मैं

रहमान फ़ारिस

हक़ीक़तों का पता दे के ख़ुद सराब हुआ

रज़ी मुजतबा

संग हैं नावक-ए-दुश्नाम हैं रुस्वाई है

राज़ी अख्तर शौक़

सलामत आए हैं फिर उस के कूचा-ओ-दर से

राज़ी अख्तर शौक़

आवार्गान-ए-शौक़ सभी घर के हो गए

राज़ी अख्तर शौक़

झुक सके आप का ये सर तो झुका कर देखें

रज़ा जौनपुरी

इमारत दैर ओ मस्जिद की बनी है ईंट ओ पत्थर से

रज़ा अज़ीमाबादी

इश्क़ की बीमारी है जिन को दिल ही दिल में गलते हैं

रज़ा अज़ीमाबादी

पर्बत टीले बंद मकानों जैसे थे

रवी कुमार

धुँद में लिपटे हुए मंज़र बहुत अच्छे लगे

रवी कुमार

ठोकरों की शय परस्तिश की नज़र तक ले गए

रौनक़ रज़ा

भूली-बिसरी ख़्वाहिशों का बोझ आँखों पर न रख

रौनक़ रज़ा

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