याद Poetry (page 10)

जी चाहे का'बे जाओ जी चाहे बुत को पूजो

वलीउल्लाह मुहिब

ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ

वलीउल्लाह मुहिब

आना है तो आ जाओ यक आन मिरा साहब

वलीउल्लाह मुहिब

ग़नीमत बूझ लेवें मेरे दर्द-आलूद नालों को

वली उज़लत

जुनूँ-आवर शब-ए-महताब थी पी की तमन्ना में

वली उज़लत

बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें

वली उज़लत

फिर मेरी ख़बर लेने वो सय्याद न आया

वली मोहम्मद वली

आज तुझ याद ने ऐ दिलबर-ए-शीरीं-हरकात

वली मोहम्मद वली

तिरा लब देख हैवाँ याद आवे

वली मोहम्मद वली

यूँ भी जीने के बहाने निकले

वली आलम शाहीन

कभी भूले से भी अब याद भी आती नहीं जिन की

वाली आसी

फिर वही रेग-ए-बयाबाँ का है मंज़र और हम

वाली आसी

जिन की यादें हैं अभी दिल में निशानी की तरह

वाली आसी

भूले-बिसरे हुए ग़म याद बहुत करता है

वाली आसी

बहुत दिन से कोई मंज़र बनाना चाहते हैं हम

वाली आसी

सहे ग़म पए रफ़्तगाँ कैसे कैसे

वाजिद अली शाह अख़्तर

अल्लाह ऐ बुतो हमें दिखलाए लखनऊ

वाजिद अली शाह अख़्तर

मोहब्बत के तआ'क़ुब में थकन से चूर होने तक

वजीह सानी

अच्छा हुआ कि इश्क़ में बर्बाद हो गए

वजीह सानी

साए ने साए को सदा दी

वजद चुगताई

कौन ये रौशनी को समझाए

वजद चुगताई

देखने में ये काँच का घर है

वजद चुगताई

आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

वफ़ा-ए-दोस्ताँ कैसी जफ़ा-ए-दुश्मनाँ कैसी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

शौक़ फिर कूचा-ए-जानाँ का सताता है मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

कहते हो अब मिरे मज़लूम पे बेदाद न हो

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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