याद Poetry (page 8)

वो मेरी जान है दिल से कभी जुदा न हुआ

यूसुफ़ ज़फ़र

मैं लिपटता रहा हूँ ख़ारों से

यूसुफ़ ज़फ़र

जो हुरूफ़ लिख गया था मिरी आरज़ू का बचपन

यूसुफ़ ज़फ़र

है गुलू-गीर बहुत रात की पहनाई भी

यूसुफ़ ज़फ़र

आओ पुरानी याद के शो'लों में ताप लें

यूसुफ़ तक़ी

दिल में जब कभी तेरी याद सो गई होगी

यूसुफ़ तक़ी

इज्ज़ के साथ चले आए हैं हम 'यज़्दानी'

यज़दानी जालंधरी

ज़िंदा रहने का वो अफ़्सून-ए-अजब याद नहीं

यज़दानी जालंधरी

आप को भूल के मैं याद-ए-ख़ुदा करता हूँ

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

करम नहीं तो सितम ही सही रवा रखना

यासीन क़ुदरत

उमंगों में वही जोश-ए-तमन्ना-ज़ाद बाक़ी है

याक़ूब उस्मानी

कोई बे-नाम ख़लिश उकसाए

याक़ूब राही

उस की याद और दर्द की सौग़ात मेरे साथ थी

यहया ख़ालिद

ख़ुदा गवाह

यहया अमजद

रौशन तमाम काबा ओ बुत-ख़ाना हो गया

यगाना चंगेज़ी

दिल लगाने की जगह आलम-ए-ईजाद नहीं

यगाना चंगेज़ी

आप में क्यूँकर रहे कोई ये सामाँ देख कर

यगाना चंगेज़ी

आँख दिखलाने लगा है वो फ़ुसूँ-साज़ मुझे

यगाना चंगेज़ी

दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए

वज़ीर अली सबा लखनवी

दश्त-ए-जुनूँ में आ गईं आँखें जो उन की याद

वज़ीर अली सबा लखनवी

जो अदू-ए-बाग़ हो बरबाद हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सबा जज़्ब पे जिस दम दिल-ए-नाशाद आया

वज़ीर अली सबा लखनवी

मंज़र था राख और तबीअत उदास थी

वज़ीर आग़ा

तुझे भी याद तो होगा

वज़ीर आग़ा

तिरा ही रूप नज़र आए जा-ब-जा मुझ को

वज़ीर आग़ा

मंज़र था राख और तबीअत उदास थी

वज़ीर आग़ा

धार सी ताज़ा लहू की शबनम-अफ़्शानी में है

वज़ीर आग़ा

बे-ज़बाँ कलियों का दिल मैला किया

वज़ीर आग़ा

किसी को याद कर के एक दिन ख़ल्वत में रोया था

वासिफ़ देहलवी

तिरी उल्फ़त में जितनी मेरी ज़िल्लत बढ़ती जाती है

वासिफ़ देहलवी

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