कर के दफ़्न अपने पराए चल दिए
बेकसी का क़ब्र पर मातम रहा
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संग-ए-दर बन कर भी क्या हसरत मिरे दिल में नहीं
इश्क़ रुस्वा-कुन-ए-आलम वो है 'अहसन' जिस से
है वो जब दिल में तो कैसी जुस्तुजू
इक नज़र में दर्द खो देना दिल-ए-बीमार का
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है
राह-ए-उल्फ़त का निशाँ ये है कि वो है बे-निशाँ
दिल झुका माइल तबीअत हो गई
चाहिए इश्क़ में इस तरह फ़ना हो जाना
साक़ी ओ वाइज़ में ज़िद है बादा-कश चक्कर में है
कशिश-ए-हुस्न की ये अंजुमन-आराई है
किसी माशूक़ का आशिक़ से ख़फ़ा हो जाना
अदा में बाँकपन अंदाज़ में इक आन पैदा कर