जब मुलाक़ात हुई तुम से तो तकरार हुई
ऐसे मिलने से तो बेहतर है जुदा हो जाना
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अदा में बाँकपन अंदाज़ में इक आन पैदा कर
हमारा इंतिख़ाब अच्छा नहीं ऐ दिल तो फिर तू ही
क्या ज़रूरत बे-ज़रूरत देखना
यहाँ बग़ैर-फ़ुग़ाँ शब बसर नहीं होती
सो हश्र में लिए दिल-ए-हसरत मआब में
मुतमइन अपने यक़ीं पर अगर इंसाँ हो जाए
चाहिए इश्क़ में इस तरह फ़ना हो जाना
कर के दफ़्न अपने पराए चल दिए
दिल झुका माइल तबीअत हो गई
क़ासिद नई अदा से अदा-ए-पयाम हो
जब तक अपने दिल में उन का ग़म रहा