क़ासिद नई अदा से अदा-ए-पयाम हो
मतलब ये है कि बात न हो और कलाम हो
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शेख़ को जन्नत मुबारक हम को दोज़ख़ है क़ुबूल
इक नज़र में दर्द खो देना दिल-ए-बीमार का
नज़्ज़ारा जो होता है लब-ए-बाम तुम्हारा
कशिश-ए-हुस्न की ये अंजुमन-आराई है
तमाम उम्र इसी रंज में तमाम हुई
बाहम जो हुस्न ओ इश्क़ में याराना हो गया
राह-ए-उल्फ़त का निशाँ ये है कि वो है बे-निशाँ
हम अपनी बे-क़रारी-ए-दिल से हैं बे-क़रार
किसी माशूक़ का आशिक़ से ख़फ़ा हो जाना
हमारा इंतिख़ाब अच्छा नहीं ऐ दिल तो फिर तू ही
दिल झुका माइल तबीअत हो गई
तंग आ गया हूँ वुस्अत-ए-मफ़हूम-ए-इश्क़ से