हम अपनी बे-क़रारी-ए-दिल से हैं बे-क़रार
आमेज़़िश-ए-सुकूँ है इस इज़्तिराब में
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क़ासिद नई अदा से अदा-ए-पयाम हो
बाहम जो हुस्न ओ इश्क़ में याराना हो गया
इश्क़ करते हैं तो अहल-ए-इश्क़ यूँ सौदा करें
हमारा इंतिख़ाब अच्छा नहीं ऐ दिल तो फिर तू ही
यहाँ बग़ैर-फ़ुग़ाँ शब बसर नहीं होती
मौत ही आप के बीमार की क़िस्मत में न थी
शेख़ को जन्नत मुबारक हम को दोज़ख़ है क़ुबूल
अदा में बाँकपन अंदाज़ में इक आन पैदा कर
तुम्हारी लन-तरानी के करिश्मे देखे-भाले हैं
राह-ए-उल्फ़त का निशाँ ये है कि वो है बे-निशाँ
सो हश्र में लिए दिल-ए-हसरत मआब में