तुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया
बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूँ मैं
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हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके कुछ कह न सके कुछ सुन न सके
रह-ए-शौक़ से अब हटा चाहता हूँ
बर्बाद-ए-तमन्ना पे इताब और ज़ियादा
हुस्न फिर फ़ित्नागर है क्या कहिए
परतव-ए-साग़र-ए-सहबा क्या था
सीने में उन के जल्वे छुपाए हुए तो हैं
मादाम
न हम-आहंग-ए-मसीहा न हरीफ़-ए-जिब्रील
आसमाँ तक जो नाला पहुँचा है
एक जिला-वतन की वापसी
अँधेरी रात का मुसाफ़िर
या तो किसी को जुरअत-ए-दीदार ही न हो