Ghazals of Davarka Das Shola

Ghazals of Davarka Das Shola
नामद्वारका दास शोला
अंग्रेज़ी नामDavarka Das Shola

ज़ीस्त बे-वादा-ए-अनवार-ए-सहर है कि जो थी

ज़िंदगी क्या है इब्तिला के सिवा

ज़रा निगाह उठाओ कि ग़म की रात कटे

नहीं कहते किसी से हाल-ए-दिल ख़ामोश रहते हैं

मेरी मंज़िल कहाँ है क्या मा'लूम

मिरी बे-क़रारी मिरी आह-ओ-ज़ारी ये वहशत नहीं है तो फिर और क्या है

इश्क़ में आबरू ख़राब हुई

इंसाँ ब-यक निगाह बुरा भी भला भी है

ग़म को वज्ह-ए-हयात कहते हैं

एक रहज़न को अमीर-ए-कारवाँ समझा था मैं

दिल-ए-बे-मुद्दआ का मुद्दआ' क्या

देख जुर्म-ओ-सज़ा की बात न कर

अपनों के सितम याद न ग़ैरों की जफ़ा याद

अपनी बेचारगी पे रो न सके

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