हम को बेचैन किए जाते हैं
हाए क्या शय वो लिए जाते हैं
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Habib Jalib
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मैं ग़र्क़ हो रहा था कि तूफ़ान-ए-इश्क़ ने
कूचा-गर्दी में जवानी जाएगी
क्या कहिए दास्तान-ए-तमन्ना बदल गई
आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
फिर ए'तिबार-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
हुस्न-ए-ख़ुद-बीं को हुआ और सिवा नाज़-ए-हिजाब
क्या जाने किस ख़याल से छोड़ा प हाल-ए-ज़ार
मय-ए-कौसर का असर चश्म-ए-सियह-फ़ाम में है
असर-ए-इश्क़ से हूँ सूरत-ए-शम्अ ख़ामोश
शबाब ढलते ही आई पीरी मआ'ल पर अब नज़र हुई है