Sad Poetry (page 370)
दश्त-ए-वहशत-ख़ेज़ में उर्यां है 'आग़ा' आप ही
आग़ा अकबराबादी
वो कहते हैं उट्ठो सहर हो गई
आग़ा अकबराबादी
तिरे जलाल से ख़ुर्शीद को ज़वाल हुआ
आग़ा अकबराबादी
सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता
आग़ा अकबराबादी
शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना
आग़ा अकबराबादी
सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया
आग़ा अकबराबादी
पाँव फिर होवेंगे और दश्त-ए-मुग़ीलाँ होगा
आग़ा अकबराबादी
नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं
आग़ा अकबराबादी
नमाज़ कैसी कहाँ का रोज़ा अभी मैं शग़्ल-ए-शराब में हूँ
आग़ा अकबराबादी
नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ
आग़ा अकबराबादी
मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त
आग़ा अकबराबादी
मलते हैं हाथ, हाथ लगेंगे अनार कब
आग़ा अकबराबादी
मद्दाह हूँ मैं दिल से मोहम्मद की आल का
आग़ा अकबराबादी
ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा
आग़ा अकबराबादी
जीते-जी के आश्ना हैं फिर किसी का कौन है
आग़ा अकबराबादी
जा लड़ी यार से हमारी आँख
आग़ा अकबराबादी
हमारे सामने कुछ ज़िक्र ग़ैरों का अगर होगा
आग़ा अकबराबादी
दिल में तिरे ऐ निगार क्या है
आग़ा अकबराबादी
दौर साग़र का चले साक़ी दोबारा एक और
आग़ा अकबराबादी
चाहत ग़म्ज़े जता रही है
आग़ा अकबराबादी
बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम
आग़ा अकबराबादी
तिरे लबों को मिली है शगुफ़्तगी गुल की
आग़ा निसार
यही नहीं कि फ़क़त प्यार करने आए हैं
आग़ा निसार
दीवाली
आफ़ताब राईस पानीपती
चढ़ा दिया है भगत-सिंह को रात फाँसी पर
आफ़ताब राईस पानीपती
भगवान कृष्ण के चरनों में श्रधा के फूल चढ़ाने को
आफ़ताब राईस पानीपती
अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
आफ़ताबुद्दौला लखनवी क़लक़
दानिस्ता हम ने अपने सभी ग़म छुपा लिए
आफ़ाक़ सिद्दीक़ी
क्या ज़मीं क्या आसमाँ कुछ भी नहीं
आफ़ाक़ सिद्दीक़ी
मिरी ख़ामोशियों की झील में फिर
आदिल रज़ा मंसूरी