Sad Poetry (page 371)
रिवायत
आदिल रज़ा मंसूरी
पत्ते का ग़म
आदिल रज़ा मंसूरी
पस-ओ-पेश
आदिल रज़ा मंसूरी
ना-कर्दा गुनाह
आदिल रज़ा मंसूरी
न हाथ बाग पर है न पा है रिकाब में
आदिल रज़ा मंसूरी
मैं
आदिल रज़ा मंसूरी
दो अजनबी
आदिल रज़ा मंसूरी
वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है
आदिल रज़ा मंसूरी
सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है
आदिल रज़ा मंसूरी
जो अश्क बन के हमारी पलक पे बैठा था
आदिल रज़ा मंसूरी
एक इक लम्हे को पलकों पे सजाता हुआ घर
आदिल रज़ा मंसूरी
आँधियाँ ग़म की चलीं और कर्ब-बादल छा गए
अाबिदा उरूज
गुज़रे जो अपने यारों की सोहबत में चार दिन
ए जी जोश