Sad Poetry (page 369)
जो चाहते हो सो कहते हो चुप रहने की लज़्ज़त क्या जानो
आले रज़ा रज़ा
हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ
आले रज़ा रज़ा
तमाम उम्र कटी उस की जुस्तुजू करते
आल-ए-अहमद सूरूर
हस्ती के भयानक नज़्ज़ारे साथ अपने चले हैं दुनिया से
आल-ए-अहमद सूरूर
बस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा
आल-ए-अहमद सूरूर
टीपू की आवाज़
आल-ए-अहमद सूरूर
ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी
आल-ए-अहमद सूरूर
यूँ जो उफ़्ताद पड़े हम पे वो सह जाते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
ये दौर मुझ से ख़िरद का वक़ार माँगे है
आल-ए-अहमद सूरूर
वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला
आल-ए-अहमद सूरूर
तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं
आल-ए-अहमद सूरूर
सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर
आल-ए-अहमद सूरूर
शगुफ़्तगी-ए-दिल-ए-वीराँ में आज आ ही गई
आल-ए-अहमद सूरूर
सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र क्या था
आल-ए-अहमद सूरूर
नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है
आल-ए-अहमद सूरूर
लोग तन्हाई का किस दर्जा गिला करते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
कुछ लोग तग़य्युर से अभी काँप रहे हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है
आल-ए-अहमद सूरूर
जिस ने किए हैं फूल निछावर कभी कभी
आल-ए-अहमद सूरूर
हम न इस टोली में थे यारो न उस टोली में थे
आल-ए-अहमद सूरूर
हर इक जन्नत के रस्ते हो के दोज़ख़ से निकलते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सूरूर
हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है
आल-ए-अहमद सूरूर
फ़ुग़ान-ए-दर्द में भी दर्द की ख़लिश ही नहीं
आल-ए-अहमद सूरूर
दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें
आल-ए-अहमद सूरूर
दास्तान-ए-शौक़ कितनी बार दोहराई गई
आल-ए-अहमद सूरूर
आज से पहले तिरे मस्तों की ये ख़्वारी न थी
आल-ए-अहमद सूरूर
ज़ाहिदो कअ'बे की जानिब खींचते हो क्यूँ मुझे
आग़ा अकबराबादी