Sad Poetry (page 368)
इक कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें तो किसे दें
आनिस मुईन
बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है
आनिस मुईन
अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआ
आनिस मुईन
उस के चेहरे पे तबस्सुम की ज़िया आएगी
आनन्द सरूप अंजुम
नए ज़माने के नित-नए हादसात लिखना
आनन्द सरूप अंजुम
मैं डर रहा हूँ हर इक इम्तिहान से पहले
आनन्द सरूप अंजुम
लहू लहू आरज़ू बदन का लिहाफ़ होगा
आनन्द सरूप अंजुम
हो गए आँगन जुदा और रास्ते भी बट गए
आनन्द सरूप अंजुम
हवा चली है न पत्ता कोई हिला अब तक
आनन्द सरूप अंजुम
हर शय आनी-जानी है
आनन्द सरूप अंजुम
हर दुआ होगी बे-असर न समझ
आनन्द सरूप अंजुम
आज़माइश में कटी कुछ इम्तिहानों में रही
आनन्द सरूप अंजुम
ज़रा सी चाय गिरी और दाग़ दाग़ वरक़
आमिर सुहैल
सलोनी सर्दियों की नज़्म
आमिर सुहैल
अदा है ख़्वाब है तस्कीन है तमाशा है
आमिर सुहैल
अब तुम को ही सावन का संदेसा नहीं बनना
आमिर सुहैल
ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं
आलोक श्रीवास्तव
ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम
आलोक श्रीवास्तव
ये और बात दूर रहे मंज़िलों से हम
आलोक श्रीवास्तव
वही आँगन वही खिड़की वही दर याद आता है
आलोक श्रीवास्तव
तुम्हारे पास आते हैं तो साँसें भीग जाती हैं
आलोक श्रीवास्तव
रोज़ ख़्वाबों में आ के चल दूँगा
आलोक श्रीवास्तव
मुझे सिरे से पकड़ कर उधेड़ देती है
आलोक श्रीवास्तव
हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं
आलोक श्रीवास्तव
धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैं ने देखा है
आलोक श्रीवास्तव
उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम
आले रज़ा रज़ा
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
आले रज़ा रज़ा
दर्द-ए-दिल और जान-लेवा पुर्सिशें
आले रज़ा रज़ा
उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम
आले रज़ा रज़ा
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
आले रज़ा रज़ा