Sad Poetry (page 367)
घरौंदे ख़्वाबों के सूरज के साथ रख लेते
आशुफ़्ता चंगेज़ी
घर की हद में सहरा है
आशुफ़्ता चंगेज़ी
दूर तक फैला समुंदर मुझ पे साहिल हो गया
आशुफ़्ता चंगेज़ी
दिल डूबने लगा है तवानाई चाहिए
आशुफ़्ता चंगेज़ी
धूप के रथ पर हफ़्त अफ़्लाक
आशुफ़्ता चंगेज़ी
बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता
आशुफ़्ता चंगेज़ी
भीनी ख़ुशबू सुलगती साँसों में
आशुफ़्ता चंगेज़ी
बदन भीगेंगे बरसातें रहेंगी
आशुफ़्ता चंगेज़ी
आँखों के सामने कोई मंज़र नया न था
आशुफ़्ता चंगेज़ी
आँखों के बंद बाब लिए भागते रहे
आशुफ़्ता चंगेज़ी
मैं हूँ हैराँ ये सिलसिला क्या है
आस मोहम्मद मोहसिन
बोसीदा जिस्म-ओ-जाँ की क़बाएँ लिए हुए
आस मोहम्मद मोहसिन
अरक़ जब उस परी के चेहरा-ए-पुर-नूर से टपके
आरिफ़ुद्दीन आजिज़
ये इंतिज़ार सहर का था या तुम्हारा था
आनिस मुईन
याद है 'आनिस' पहले तुम ख़ुद बिखरे थे
आनिस मुईन
वो जो प्यासा लगता था सैलाब-ज़दा था
आनिस मुईन
था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दीवाली
आनिस मुईन
मेरे अपने अंदर एक भँवर था जिस में
आनिस मुईन
मैं अपनी ज़ात की तन्हाई में मुक़य्यद था
आनिस मुईन
क्यूँ खुल गए लोगों पे मिरी ज़ात के असरार
आनिस मुईन
गए ज़माने की चाप जिन को समझ रहे हो
आनिस मुईन
तू मेरा है
आनिस मुईन
एक नज़्म
आनिस मुईन
ये और बात कि रंग-ए-बहार कम होगा
आनिस मुईन
वो मेरे हाल पे रोया भी मुस्कुराया भी
आनिस मुईन
वो कुछ गहरी सोच में ऐसे डूब गया है
आनिस मुईन
मिलन की साअ'त को इस तरह से अमर किया है
आनिस मुईन
कितने ही पेड़ ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ से उजड़ गए
आनिस मुईन
जीवन को दुख दुख को आग और आग को पानी कहते
आनिस मुईन
हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और
आनिस मुईन