Sad Poetry (page 365)
ग़म को सबात है न ख़ुशी को क़रार है
आसी रामनगरी
दिल की दहलीज़ सूनी सूनी है
आसी रामनगरी
दिल की बात क्या कहिए दिल अजीब बस्ती है
आसी रामनगरी
दी गई तरतीब-ए-बज़्म-ए-कुन-फ़काँ मेरे लिए
आसी रामनगरी
धूप हालात की हो तेज़ तो और क्या माँगो
आसी रामनगरी
बाब-ए-क़फ़स खुलने को खुला है
आसी रामनगरी
असीरान-ए-क़फ़स ऐसा तो हो तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ अपना
आसी रामनगरी
अजीब शहर का नक़्शा दिखाई देता है
आसी रामनगरी
दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
आसी ग़ाज़ीपुरी
बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है
आसी ग़ाज़ीपुरी
ज़ख़्म-ए-दिल हम दिखा नहीं सकते
आसी ग़ाज़ीपुरी
वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद
आसी ग़ाज़ीपुरी
उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था
आसी ग़ाज़ीपुरी
ताब-ए-दीदार जू लाए मुझे वो दिल देना
आसी ग़ाज़ीपुरी
रविश उस चाल में तलवार की है
आसी ग़ाज़ीपुरी
क़तरा वही कि रू-कश-ए-दरिया कहें जिसे
आसी ग़ाज़ीपुरी
न मेरे दिल न जिगर पर न दीदा-ए-तर पर
आसी ग़ाज़ीपुरी
कलेजा मुँह को आता है शब-ए-फ़ुर्क़त जब आती है
आसी ग़ाज़ीपुरी
इतना तो जानते हैं कि आशिक़ फ़ना हुआ
आसी ग़ाज़ीपुरी
हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की
आसी ग़ाज़ीपुरी
एक जल्वे की हवस वो दम-ए-रेहलत भी नहीं
आसी ग़ाज़ीपुरी
उस शोख़ से मिलते ही हुई अपनी नज़र तेज़
आसी फ़ाईकी
उस पे क्या गुज़रेगी वक़्त मर्ग अंदाज़ा लगा
आसी फ़ाईकी
ख़ाक सहरा में उड़ाती है ये दीवानी हवा
आसी फ़ाईकी
ये बात याद रखेंगे तलाशने वाले
आशुफ़्ता चंगेज़ी
तुझ को भी क्यूँ याद रखा
आशुफ़्ता चंगेज़ी
तू कभी इस शहर से हो कर गुज़र
आशुफ़्ता चंगेज़ी
तेज़ी से बीतते हुए लम्हों के साथ साथ
आशुफ़्ता चंगेज़ी
तेरी ख़बर मिल जाती थी
आशुफ़्ता चंगेज़ी
सफ़र तो पहले भी कितने किए मगर इस बार
आशुफ़्ता चंगेज़ी