Sad Poetry (page 3)
ज़ब्त की हद से भी जिस वक़्त गुज़र जाता है
शौक़ मुरादाबादी
देखे-भाले रस्ते थे
असरार ज़ैदी
बन गई नाज़ मोहब्बत तलब-ए-नाज़ के बा'द
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
तुम्हारे लब पे नाम आया हमारा
अमित सतपाल तनवर
गुज़़रेंगे तेरे दौर से जो कुछ भी हाल हो
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा
अनवर अंजुम
ये सन्नाटा है मैं हूँ चाँदनी में
अमित सतपाल तनवर
तेज़ हो जाएँ हवाएँ तो बगूला हो जाऊँ
ज़ुबैर शिफ़ाई
बला-ए-तीरा-शबी का जवाब ले आए
अख़्तर सईद ख़ान
ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं
आरिफ़ अब्दुल मतीन
हर मुलाक़ात में लगते हैं वो बेगाने से
ए जी जोश
कोई रुत्बा तो कोई नाम-नसब पूछता है
सियाह-रात पशेमाँ है हम-रकाबी से
अहमद फ़ाख़िर
कोई शिकवा तो ज़ेर-ए-लब होगा
ए जी जोश
किस को होगा तिरे आने का पता मेरे बा'द
महमूद शाम
जिस के दिल में कोई अरमान नहीं होता है
अख़्तर आज़ाद
क्यूँ यूरिश-ए-तरब में भी ग़म याद आ गए
एहतिशाम हुसैन
सुलग रहा है कोई शख़्स क्यूँ अबस मुझ में
अब्दुल्लाह कमाल
प्यार के खट्टे-मीठे नामे वो लिखती है मैं पढ़ता हूँ
बशीर दादा
न तीरगी के लिए हूँ न रौशनी के लिए
ऐन सलाम
हम उस से इश्क़ का इज़हार कर के देखते हैं
अख़्तर हाशमी
लज़्ज़त-ए-हिज्र ने तड़पाया बहुत रुस्वा किया
नसीम शेख़
कोई चराग़ न जुगनू सफ़र में रक्खा गया
वफ़ा नक़वी
था जो मेरे ज़ौक़ का सामान आधा रह गया
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
आकाश पे बादल छाए थे
बीना गोइंदी
ये जहान-ए-आब-ओ-गिल लगता है इक माया मुझे
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
क्या मैं जुगनू को आफ़्ताब करूँ
तरुणा मिश्रा
ज़िंदगी होने का दुख सहने में है
अर्श सिद्दीक़ी
नहीं ख़स्ता-हाली पे ना-मुतमइन हम
अनवर शऊर
नज़र को क़ुर्ब-ए-शनासाई बाँटने वाले
हनीफ़ राही