ज़ाविए

मुझे तो बे-सुकूँ सा कर गया उस शोख़ का कहना

हक़ीक़त के तराज़ू में कभी तौला है जज़्बों को

मोहब्बत के तक़द्दुस का भरम रक्खा कभी तू ने

कभी बे-साख़्ता लिपटा है महरूम-ए-सबाहत से

कभी हाल-ए-कजी पूछा है मसहूर-ए-क़बाहत से

कभी दश्त-ए-जुनूँ पाटा है जज़्बात-ए-इरादत से

कभी सरसर से तल्ख़ी का सबब पूछा मतानत से

कभी तरजीह दी ख़ाक-ए-चमन पर रेग-ए-सहरा को

गुल-ओ-बुलबुल से हट कर भी कभी देखा है फ़ितरत को

गुल-ओ-बुलबुल बजा लेकिन चमन में ख़ार भी तो है

सबाहत वक़्फ़-ए-गुलशन ही नहीं कोहसार भी तो हैं

कई पोशीदा अज़ फ़िक्र-ओ-नज़र शहकार भी तो हैं

ग़लत हैं नासिया-फ़रसाइयाँ तेरी तलब तेरी

तिरी राहें जुदा हैं अहल-ए-दिल से अहल-ए-हसरत से

तिरा हुस्न-ए-नज़र महदूद है ज़ाती मक़ासिद तक

तिरी ये शपरा-चश्मी ही तुझे बरबाद कर देगी

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Zawiye In Hindi By Famous Poet Mohammad Tanviruzzaman. Zawiye is written by Mohammad Tanviruzzaman. Complete Poem Zawiye in Hindi by Mohammad Tanviruzzaman. Download free Zawiye Poem for Youth in PDF. Zawiye is a Poem on Inspiration for young students. Share Zawiye with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.