निगाहों से निकल कर जो गए हैं
वो चेहरे आइनों में खो गए हैं
ज़मीं पर नूर की बारिश थी जिन से
सितारे आसमाँ में बो गए हैं
खिले थे जो चमन में गुल की सूरत
सबा के साथ रुख़्सत हो गए हैं
जलाने वाले यादों के दिए अब
चराग़-ए-जाँ बुझा कर सो गए हैं
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बे-निशाँ
तपते सहरा में ये ख़ुशबू साथ कहाँ से आई
दिल की लगी रह जाएगी
लफ़्ज़ों की दुकान में
गिरना नहीं है और सँभलना नहीं है अब
नारसी सस
रंज-ए-गिरान-ए-शौक़ का हासिल न कह इसे
लफ़्ज़ों की दूकान में
छुपा रक्खा था यूँ ख़ुद को कमाल मेरा था
यूँ लगता है सब कुछ खोने आया था
सवाल
फ़ज़ा में नग़्मा-ए-आवाज़-ए-पा है मेरे लिए