दूर के जल्वों की शादाबी का दिल-दादा न हो

दूर के जल्वों की शादाबी का दिल-दादा न हो

तू जिसे दरिया समझता है कहीं सहरा न हो

आइने को एक मुद्दत हो गई देखे हुए

वो जबीन-ए-शौक़ जिस पर सोच का साया न हो

वो भी मेरे पास से गुज़रा उसी अंदाज़ से

मैं ने भी ज़ाहिर किया जैसे उसे देखा न हो

इस तरफ़ क्या तुर्फ़ा आलम है ये खुल सकता नहीं

आदमी का क़द अगर दीवार से ऊँचा न हो

मस्लहत चाहे रहूँ डाले तसन्नो का नक़ाब

दोस्ती की माँग चेहरे पर कोई पर्दा न हो

धूप से घबरा के बैठा तो है लेकिन देख ले

ये किसी गिरती हुई दीवार का साया न हो

क़हक़हों की छाँव में इक शख़्स बैठा है उदास

वो भी मेरी ही तरह इस भीड़ में तन्हा न हो

'साबिर' इन मानूस गलियों से तो दिल उकता गया

आ चलें इस शहर में पहले जैसे देखा न हो

(344) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Nau Bahar Sabir. is written by Nau Bahar Sabir. Complete Poem in Hindi by Nau Bahar Sabir. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.