Ghazals of Parveen Shakir (page 2)

Ghazals of Parveen Shakir (page 2)
नामपरवीन शाकिर
अंग्रेज़ी नामParveen Shakir
जन्म की तारीख1952
मौत की तिथि1994
जन्म स्थानKarachi

क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला

क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला

कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी

कुछ ख़बर लाई तो है बाद-ए-बहारी उस की

कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए

कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की

खुली आँखों में सपना झाँकता है

खुलेगी उस नज़र पे चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ता

ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ बर्ग-ओ-बार का मौसम

कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी

जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे

जला दिया शजर-ए-जाँ कि सब्ज़-बख़्त न था

जगा सके न तिरे लब लकीर ऐसी थी

जब साज़ की लय बदल गई थी

इसी में ख़ुश हूँ मिरा दुख कोई तो सहता है

इल्ज़ाम था दिए पे न तक़्सीर रात की

हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया

हवा-ए-ताज़ा में फिर जिस्म ओ जाँ बसाने का

हवा महक उठी रंग-ए-चमन बदलने लगा

हर्फ़-ए-ताज़ा नई ख़ुशबू में लिखा चाहता है

गूँगे लबों पे हर्फ़-ए-तमन्ना किया मुझे

गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो

गवाही कैसे टूटती मुआ'मला ख़ुदा का था

गए मौसम में जो खिलते थे गुलाबों की तरह

एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा

इक हुनर था कमाल था क्या था

दुख नविश्ता है तो आँधी को लिखा आहिस्ता

दुआ का टूटा हुआ हर्फ़ सर्द आह में है

दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना

धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर

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