Ghazals of Parveen Shakir

Ghazals of Parveen Shakir
नामपरवीन शाकिर
अंग्रेज़ी नामParveen Shakir
जन्म की तारीख1952
मौत की तिथि1994
जन्म स्थानKarachi

ज़िंदगी बे-साएबाँ बे-घर कहीं ऐसी न थी

वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा

वो मजबूरी नहीं थी ये अदाकारी नहीं है

वो हम नहीं जिन्हें सहना ये जब्र आ जाता

वक़्त-ए-रुख़्सत आ गया दिल फिर भी घबराया नहीं

टूटी है मेरी नींद मगर तुम को इस से क्या

थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी

तेरी ख़ुश्बू का पता करती है

तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ

ताज़ा मोहब्बतों का नशा जिस्म-ओ-जाँ में है

तराश कर मिरे बाज़ू उड़ान छोड़ गया

सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ

शौक़-ए-रक़्स से जब तक उँगलियाँ नहीं खुलतीं

शाम आई तिरी यादों के सितारे निकले

शब वही लेकिन सितारा और है

समुंदरों के उधर से कोई सदा आई

सभी गुनाह धुल गए सज़ा ही और हो गई

रुकने का समय गुज़र गया है

रुकी हुई है अभी तक बहार आँखों में

रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी

रंग ख़ुश-बू में अगर हल हो जाए

क़र्या-ए-जाँ में कोई फूल खिलाने आए

क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी

क़दमों में भी तकान थी घर भी क़रीब था

पूरा दुख और आधा चाँद

पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन

नम हैं पलकें तिरी ऐ मौज-ए-हवा रात के साथ

मुश्किल है कि अब शहर में निकले कोई घर से

मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे

मैं फ़क़त चलती रही मंज़िल को सर उस ने किया

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